कार्य की समृद्ध फसल (कर्म)

मानव जीवन एक ऐसा क्षेत्र है, जहां कर्म बोए जाते हैं और उनके अच्छे या बुरे फल काटे जाते हैं। जो अच्छे कर्म करता है, उसे अच्छा फल मिलता है। बुरे कर्म करने वाले को बुरे फल मिलते हैं। यह कहा जाता है। “जो आम बोएगा, वह आम खाएगा, जो बबूल बोएगा, उसे काँटे मिलेंगे।” जिस प्रकार बबूल की बुवाई से आम प्राप्त करना प्रकृति में संभव नहीं है, उसी प्रकार बुराइयों के बीज बोने से अच्छाई की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। कार्य की समृद्ध फसल (कर्म)

मानव जीवन में इससे बढ़कर कोई सत्य नहीं है। अच्छाई का फल शांति, खुशी और प्रगति के अलावा और कुछ नहीं हो सकता। इसी तरह, बुराई से न तो कभी अच्छा हुआ है और न ही भविष्य में कभी भी इसका परिणाम अच्छा होगा। इतिहास इसका गवाह है। कोई भी कार्य कभी भी बिना कारण के नहीं होता है। इसी प्रकार कोई भी कर्म बिना फल के नहीं होता। सूक्ष्म और स्थूल दोनों दृष्टिकोणों से यह मूल नियम है कि नियति कभी स्वयं द्वारा निर्मित नहीं होती है, बल्कि व्यक्ति की अपनी क्रिया की कलम से लिखी जाती है। एक अच्छा और बुरा भाग्य हमेशा अपने ही कर्मों का परिणाम होता है।

यह सोचना मात्र एक भ्रम है कि कोई भी व्यक्ति, समाज या देश बुराई से समृद्ध हुआ है। जिंदगी हर पल का हिसाब रखती है। पानी हमेशा पानी रहेगा। यदि यह म्यू से बहता है, तो यह दुर्गंध से रहित नहीं होगा। पानी का भ्रम पैदा करने से भी यह पीने योग्य नहीं हो सकता। इसी तरह, धोखाधड़ी के माध्यम से प्राप्त सफलता अंततः बदनामी की ओर ले जाती है। सदाचार से ही सफलता मिलती है। यह अकेले मनुष्य के साथ-साथ दूसरे जीवन को भी सुधारता है। कर्मों के फल अकाट्य होते हैं।

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

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